ईमानदारी और जिम्मेदारी के प्रति प्रतिबद्धता
समारोह में बोलते हुए दुबे ने शिक्षक से वरिष्ठ अधिकारी बनने के अपने सफर पर विचार किया। उन्होंने कहा, “मैंने कभी दिखावे पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि मूल्यों को बनाए रखा। मैंने अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से पूरा किया, पहले एक शिक्षक के रूप में और बाद में एक अधिकारी के रूप में।”
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दुबे ने बताया कि कैसे एक शिक्षक के रूप में उनके अनुभवों ने बीईईओ के रूप में उनकी अपेक्षाओं और निर्णयों को आकार दिया। उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “एक बार शिक्षक बनने के बाद, हमेशा शिक्षक ही रहते हैं।”
एक अनुकरणीय करियर का सम्मान
प्रभात खबर के रेजिडेंट एडिटर संजय मिश्रा ने दुबे की ईमानदारी के एक दुर्लभ व्यक्तित्व के रूप में प्रशंसा की। उन्होंने कहा, “ऐसे युग में जहां 24 कैरेट सोने का सिक्का मिलना मुश्किल है, दुबे का चरित्र शुद्ध सोने की तरह चमकता है।” उन्होंने समाज से ऐसे ईमानदार व्यक्तियों को उजागर करने का आग्रह किया, ताकि दूसरों को प्रेरणा मिल सके।
शशि भूषण कुमार, संजय कुमार, दिलीप प्रसाद और अन्य सहित पूर्व सहकर्मियों और शिक्षकों ने दुबे के साथ अपने अनुभवों को याद किया और एक शिक्षक, प्रशिक्षक और बीईईओ के रूप में उनके योगदान की प्रशंसा की।
एक यादगार विदाई
इस कार्यक्रम में अरविंद तिवारी द्वारा समन्वित भावपूर्ण भाषण दिए गए, तथा मुकेश कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन किया। दुबे को सम्मानित करने के लिए बड़ी संख्या में शिक्षक उपस्थित थे, जो उनके पूरे करियर में अर्जित किए गए गहन सम्मान को दर्शाता है।